हास्य कविता |
एक गांव में रहता था निर्धन किसान परिवार
पति पत्नी मिल चला रहे थे किसी तरह घर बार
दोनों मिलकर खूब परिश्रम खेतो में करते थे
फिर भी अच्छी तरह न उनके कभी पेट भरते थे
एक रोज की बात है दोनों बैठे थे आँगन में
पति अपनी पत्नी से बोला अति प्रसन्न हो मन में
सुन प्रिय इस बार फसल अपनी भी अच्छी होगी
खाएंगे भर पेट और घर में भी लक्ष्मी होगी
यह सुनकर पत्नी भी हो गयी फूलकर कुप्पा
और बोली मेरे होने वाले बच्चो के पप्पा
घर में जब लक्ष्मी होगी तो मई नथुनी गढवाउंगी
बन ठन के शहर सिनेमा देखन को जाउंगी
नहीं -नहीं मै फिजूल खर्ची कभी न होने दूंगा
बचे हुए पैसे से अच्छी भैस एक मै लूंगा
पत्नी बोली खूब चहककर चलो बात रही पक्की
घर में होगा दूध दही तो होगी खूब तरक्की
कुछ बेचूंगी दूध दही कुछ घर में भी खाउंगी
थोड़ा दूध दही मै अपने मायके को भेजवाउंगी
इतना सुनकर उछल पड़ा पति आग बबूला होकर
लगा पीटने पत्नी को मोटा सा डंडा लेकर
और पिट पिट कहता तू मेरे घर को लुटवायेगी
मेरे घर का दूध दही तू मायके को भिजवाएगी
यदि मेरे घर का दूध तू मायके को भिजवाएगी
टांगे दूंगा तोड़ मोटाई सब झड़ जाएगी
यह सब देख पडोसी अपना डंडा लेकर आया
पति के कूबड़ पर जोरो से चार बार चटकाया
डंडा खाकर किशान हो गया हक्का बक्का
बोलै हमको मार रहे क्यों अरे पडोसी कक्का
कहा पडोसी ने चलकर तुम देखो साथ हमारे
आज तुम्हारी भैस हमारी खेत चर गयी सारे
किसान बोला हे कक्का इतना झूठ न बोलो ऐसे
भैस नहीं पाली जब मैंने खेत चर गयी कैसे
पडोसी बोला , सुन बे ओ धनचक्कर
भैस नहीं तो मर पिट का कैसा है ये चक्कर
बिना भैस के दूध दही की धार बहेगी कैसे
घर में जब नहीं दूध दही तो माइके भेजेगी कैसे
सुनकर सारी बात समझ में जब किशान को आया
तब उसने अपनी पत्नी को गले से लगाया
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